TOP 20 SHAYARI OF AHMAD FARAZ
अहमद फ़राज़ उर्दू अदब के बड़े नामों में से एक है, जिनकी शायरी को पढ़ने पर लगता है कि गुलमोहर के पेड़ से फूल झड़ रहे हैं। उस पर भी फ़राज़ साहब जब ख़ुद ग़ज़ल पढ़ते हैं तो लगता है कि मौसम बारिश का है और मिट्टी की ख़ुशबू आ रही है। कुछ बेहद मशहूर ग़ज़ल है जिसके चंद शेर यूं हैं कि
अहमद फ़राज़ की शीर्ष 20 शायरी
आँखों में सितारे तो कई शाम से उतरे
पर दिल की उदासी न दर-ओ-बाम से उतरे
कुछ रंग तो उभरे तिरी गुल-ए-पैरहनी का
कुछ ज़ंग तो आईना-ए-अय्याम से उतरे
होते रहे दिल लम्हा ब-लम्हा तह-ओ-बाला
वो ज़ीना ब-ज़ीना बड़े आराम से उतरे
जब तक तिरे क़दमों में फ़रोकश हैं सुबूकश
साक़ी ख़त-ए-बादा न लब-ए-जाम से उतरे
बे-तमअ नवाज़िश भी नहीं संग-दिलों की
शायद वो मिरे घर भी किसी काम से उतरे
औरों के क़सीदे फ़क़त आ-विर्द थे जाना
जो तुझ पे कहे शे’र वो इल्हाम से उतरे
ए जान-ए-फ़राज़ ए मिरे हर दुःख के मसीहा
हर ज़हर ज़माने का तिरे नाम से उतरे
साक़िया एक नज़र जाम से पहले पहले
हम को जाना है कहीं शाम से पहले पहले
नौ-गिरफ़्तार-ए-वफ़ा सई-ए-रिहाई है अबस
हम भी उलझे थे बहुत दाम से पहले पहले
ख़ुश हो ऐ दिल कि मुहब्बत तो निभा दी तूने
लोग उजड़ जाते हैं अंजाम से पहले पहले
अब तिरे ज़िक्र पे हम बात बदल देते हैं
कितनी रग़बत थी तिरे नाम से पहले पहले
सामने उम्र पड़ी है शब-ए-तन्हाई की
वो मुझे छोड़ गया शाम से पहले पहले
कितना अच्छा था कि हम भी जिया करते थे ‘फ़राज़’
ग़ैर-मारूफ़ से गुमनाम से पहले पहले
दुःख छुपाए हुए हैं हम दोनों
ज़ख़्म खाए हुए हैं हम दोनों
ऐसा लगता है फिर ज़माने को
याद आए हुए हैं हम दोनों
तू कभी चांदनी थी धूप था मैं
अब तो साए हुए हैं हम दोनों
जैसे इक दूसरे को पा कर भी
कुछ गंवाए हुए हैं हम दोनों
जैसे इक दूसरे से शर्मिंदा
सर झुकाए हुए हैं हम दोनों
जैसे इक दूसरे की चाहत को
अब भुलाए हुए हैं हम दोनों
इश्क़ कैसा कहाँ का अहद फ़राज़
घर बसाए हुए हैं हम दोनों
अहमद फ़राज़